क्या आप सोच सकते हो कि यह दोनों बच्चों के परिवार पर क्या गुजर रही होगी ? शायद आप या मैं नहीं समझ पाएंगे। क्योंकि यह दुख सिर्फ उस परिवार को ही समझ में आएगा जीसके बच्चे बोरवेल दुर्घटना में अपनी जान गंवा चुके हैं। और आपको बताते हुए मुझे दुख हो रहा है कि पिछले 15 साल में हमारे देश के अंदर कई सारे बच्चों ने बोरवेल में गिर कर अपनी मासूम जान को कुर्बान कर दी है।
क्या आपने कभी सोचा है कि हम इतने निर्बल क्यों है ? कि बोरवेल में फंसे एक मासूम की जान भी हम नहीं बचा पाते। आखिर हम चांद और मंगल तक तो पहुंच गए हैं। लेकिन फिर भी हम क्यों बोरवेल के अंदर फंसे एक मासूम बच्चे तक उसके जिंदा रहते हुए नहीं पहुंच पाते।

क्योंकि आज से 15 साल पहले हमारे देश में पहला बोरवेल एक्सीडेंट हुआ था। जिसमें प्रिंस नाम का एक छोटा सा बच्चा बोरवेल में गिरकर फस गया था। उस वक्त शायद किस्मत अच्छी थी इसलिए प्रिंस को सही सलामत रेस्क्यू करने में सफलता मिल पाई थी। पर इस घटना के बाद हमारे देश में हर साल कई सारे बोरवेल एक्सीडेंट होते रहते हैं। और उस एक्सीडेंट के अंदर छोटे-छोटे मासूम बच्चे फंस जाते हैं। इसके बाद हमारी आर्मी हमारी एनडीआरएफ की टीम और कई सारे लोकल टीम 1 से 5 दिन तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाती है। लेकिन फिर भी ज्यादातर मामले में 99% बच्चे अपनी जान गवा देते हैं।
आखिर ऐसा क्यों होता है कि हम 1 से 5 दिन तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाते हैं। और लाखों रुपए का खर्च भी करते हैं। फिर भी जिंदा रहते हुए मासूम बच्चे तक हम नहीं पहुंच पाते? वैसे देखा जाए तो यह सवाल के कई सारे जवाब हो सकते हैं। और उनमें से कई जवाब राजकीय भी हो सकते हैं। लेकिन मेरे ख्याल से मेरे पास सिर्फ एक ही जवाब है। कि हम रेस्क्यू ऑपरेशन के अंदर विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी का उपयोग नहीं कर पाते. अगर हम रेस्क्यू ऑपरेशन के अंदर विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हैं तो हम बच्चे को आसानी से सही सलामत रेस्क्यू कर पाएंगे।
आज से कुछ साल पहले, माही नाम की एक छोटी लड़की गुड़गांव में एक खुले बोरवेल में फंस गई थी, जिसके बाद माही का रेस्क्यू ऑपरेशन 86 घंटे तक चला था, लेकिन कमनासबी से माहि ने तब तक अपना दम तोड़ दिया था। तब सदी के महानायक अमिताभ बच्चनजी ने टवीट किया था की ''हम मिसाइले तो बना लेते हे मगर बोरवेल में फंसी बच्ची को नहीं बचा पाते ''

अमिताभ बच्चन जी की इस बात ने मुझे ट्रिगर किया। और मुझे लगा की में सायंस और टेक्नोलॉजी के साथ जुड़ा हु तो मुझे बोरवेल रेस्क्यू के लिए कुछ करना चाहिए। और इस बात का दुख रहता था कि मैं इस बोरवेल में फंसी मासूम जान के लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूं।
इसीलिए मैंने 2018 से एक इनोवेशन पर काम चालू कर दिया और 14 महीने की research and development और कड़ी मेहनत के बाद एक प्रोटोटाइप इनोवेशन बना लिया। यह इनोवेशन था बोरवेल रेस्क्यू रोबोट।
यह रोबोट हमारे इनोवेशन का फर्स्ट प्रोटोटाइप मॉडल था । मैंने हमारे इस इनोवेशन को 2019 में हमारे देश को समर्पित कर दिया है। ताकि भविष्य में अगर कोई बोरवेल दुर्घटना हो तो हमारे इस इनोवेशन का उपयोग हो सके। यह इनोवेशन को देश को समर्पित कर देने के बाद में हमारे इस रोबोट के नेक्स्ट वर्जन यानी कि सेकंड फेज़ के वर्जन प्रोटोटाइप के ऊपर कार्य करने लगा। तब यह सेकंड फेज के वर्जन को बनाने के लिए और उसके अंदर research and development करने के लिए मुझे कुछ ज्यादा ही खर्चा आने लगा। जिसके अंदर मुझे टोटल ₹15 to 17 लाख का खर्चा आया। जिसके लिए मैंने मेरे सेविंग के ₹7लाख को खर्च कर दिया। और बाकी के पैसे का इंतजाम मैं नहीं कर पा रहा था तब मेरे पापा आए और मेरे पापा ने अपनी जमीन को गिरवी रखकर ₹10 लाख की हेल्प की। ताकि में यह देश सेवाकीय कार्य को पूर्ण कर सकू। आखिर में मैंने ₹15 to 17 लाख का खर्चा कर कर जनवरी 2020 में हमारे यह नेक्स्ट वर्जन को बना लिया।
बाद में यह सेकंड वर्जन में ऑटोमेशन लाने के लिए मेने तीसरा वर्जन २०२१ जनवरी में बना लिया , हमारा यह तीसरा वर्जन AI यानि आर्टिफिसियल इंटेलिजेंट से काम करता हे। और २० मिनिट में बचे को रेस्क्यू करने में सक्षम हे.. मैं यह तीसरे वर्जन प्रोटोटाइप पर आधार रखकर मैन रोबोट बनाना चाहता हूं । और यह रोबोट बना कर देश को समर्पित करना चाहता हूं।
यह ५ रोबोट बनाने में मुझे में मुझे आर्थिक समस्या आ रही है. इसी लिए मुझे आप सब देशवासियों की मदद चाहिए , अगर आप भी मेरे इस कार्य के भागीदार बनना चाहते हो , तो आप मेरी आर्थिक रूप से सहायता जरूर करे।
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